सेहत और स्वाद के लिए जरुरी है अजवाइन, जानें इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य

 सेहत और स्वाद के लिए जरुरी है अजवाइन, जानें इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य

सेहतराग टीम

हमारे किचन में वैसे तो कई ऐसे मसाले होते है जो हमारे खाने को स्वादिष्ट बनाते हैं। मसालों से ही खानों में स्वाद मिलता है। इसलिए अधिकतर सभी लोग सब्जी या चटपटा कोई भी चीज बनाते हैं। उसमें मसालों का सेवन जरुर करते हैं। उन्हीं में कई ऐसे मसाले होते हैं, जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। सभी मसालों में से एक मसाले का नाम अजवाइन है, जो लगभग सभी घरों में उपस्थित रहता है। लेकिन कई बार उसे अनदेखा भी कर दिया जाता है। वैसे आपको याद होगा कि जब आलू के पराठे, मछली या समोसा बनने लगता है तो अजवाइन एक ऐसा मसाला है, जिसे कोई भुलता नहीं है। वही अगर रसदार सब्जी को स्वादिष्ट और चटपटा बनाना है तो सभी लोग अजवाइन का प्रयोग करते हैं। तो  आइए आज हम जानने की कोशिश करते हैं अजवाइन से जुड़ी कुछ रोचक बातें-

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सदियों से है जान-पहचान

अंग्रेजी में अजवाइन का नाम कैरम सीड और कैरवे सीड है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार, इसका जन्म फारस और पड़ोसी मध्य एशियाई भू-भाग में हुआ और वहीं से यह उत्तरी यूरोप और अन्यत्र फैला। खुदाई में मिले अवेशेषों से यह पता चलता है कि अजवाइन से हमारे पुरखे ईसा के जन्म से कई सदी पहले से परिचित थे। यह बीज प्रागैतिहासिक काल के अवशेषों में मिला है और पलिनी जैसे इतिहासकारों के लेखों से पता चलता है कि रोमन इसकी जड़ों का उपयोग सब्जी के रूप में भी करते थे।

रसोई से लेकर साहित्य तक

नॉर्थ के देशों में इसका इस्तेमाल प्रमुख मसाले के रुप में होता है चाहे वह बंदगोभी की पत्तियों का चटपटा सलाद हो या गौड़ा और मूनस्टर जैसी सख्त पनीर की भेलियां, इनमें नई जान छिड़कता है अजवाइन। सलाद और सूप में ही नहीं डबल रोटियों और केक-पेस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल जरूरी माना जाता है। भूमध्य सागरीय खान-पान में अजवाइन नमकीन और मीठे व्यंजनों में समान रूप से उपयोगी समझा जाता है। पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों में इसे खासतौर से बेकरी की चीजों में काम में लाया जाता है और कुछ हल्की मदिराओं को सुवासित और स्वादिष्ट बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिम में कहीं-कहीं अजवाइन को मतिमंद लोगों का सौंफ कहा गया और कहीं इसे नाम दिया गया चरागाहों का जीरा। शायद इस कारण जब यूरोप के लिए असली जीरा दुर्लभ था और आम आदमी की पहुंच से बाहर था तब अजवाइन को ही जीरे के नाम से खरीदा-बेचा जाता था। इसका उल्लेख शेक्सपियर के एक नाटक में भी मिलता है। इसमें एक पात्र विदूषक साथी से कहता है, 'चलो मैं तुम्हें सालभर पहले बनाया एक व्यंजन खिलाता हूं जिसको मैंने अजवाइन से निखारा है!'

सेहत का खजाना

अजवाइन की गुणवत्ता पीढ़ी दर पीढ़ी बरती गई है। इसे पाचक समझा जाता है जो अजीर्ण और वायु विकार को दूर करती है। उत्तराखंड में इसे ज्वाड़ नाम से पहचाना जाता है और उदरशूल के लिए इसके कुछ बीज चबाना घरेलू नुस्खों में अभी तक प्रचलित रहा है। इस छोटे से बीज को सेहत का खजाना कहना गलत नहीं होगा। बच्चों की घुट्टी में भी इसका इस्तेमाल होता है और खांसी दूर करने वाली शरबती अंग्रेजी दवाइयों में थाइमॉल नामक तत्व अजवाइन से ही हासिल होता है।

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